आइये पड़ते हे सुदर्शन फाकीर के 10 बहतरिन शेर

आइये सुनते हे सुदर्शन फाकिर जबसर्दस्त शेर सुनके ही बोलोगे वह वह तुम छिपा लो मुजे ऐ दोस्त के गुनाहों की तरह हम तेरी याद के दमन से लिपट जाते हे हुई वही किताब गुम बड़ी हसीन रात थी ईस्क की एसी रिवायात ने दिल तोड़ दिया याद हमे आएगी दुनिया को हवालों की तरह…

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आइये सुनते मोहन झारिया जी के अल्फाज किरदार

धूल जाएंगे मुखोंटे ,हो एक तेज बारिश हे साथ का दिखावा ,पर साथ ना चलते हो हर हवा की सिहरन हँसती हे मुझसे कहकर पतझड़ मे कभी पत्ते क्या शाख पे खिलते हे जो लुट चुके हो मोहन शिकवा भी हो तो केसा मासूम रख के फितरत बाजार निकलते हे

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आइये सुनते हे मोहित झरिया जी के अल्फाज कलयुग का रावण

मे दशानन्द रावण हु चलो एक बात बताओ मूढ़ किसे तू छलता हे हर साल दहन जो करता तू राम हे क्या भगिनी के सम्मान के हेतु, हरिप्रिया का हरण किया , छुआ ना मेने पर स्त्री को , पावन सा ही सोप दिया झाक कर देख अंदर हवस के पुतले मे ढला हे मे…

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 शिक्षक ओर शिष्य का प्रेम

तुम्हारे हित्त नित तुम्हारा होगा लक्ष्य,मेरी होगी साधना शिक्षक हु गोद मे उत्थान पालता हु गीली मिट्टी को गड़कर कुम्भ मे ढालता हु लेखक बड़े भैया मोहन झरिया जी

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