- घिरो तमस से भय ना खाना
- ज्योति पुंज बन खड़ा हु पीछे
तुम्हारे हित्त नित
- कभी कठोर चाणक्य सा कभी कोमल धोम्य सा
- कभी तीखी डांट भी ,कभी स्पर्श सोम्य सा
- तुम्हारी नन्ही आखों मे नमी देख ह्रदय अफसोस जताता हे
- पर धेर्य रखना , शिक्षक ही शिष्य को शिखर पर चढ़ाता हे
तुम्हारा होगा लक्ष्य,मेरी होगी साधना
- अति पावन परिडाम मिलेंगे
- पंक मे ही अंभोज खिलेंगे
शिक्षक हु गोद मे उत्थान पालता हु
गीली मिट्टी को गड़कर कुम्भ मे ढालता हु
- तुम अबोध सा वर्तमान हो कल साकार बनाऊँगा
- कोरे कागज अमिट स्याह से रंग कई भर जाऊंगा
- शिक्षक हु हार कर जीतना सिखलाऊँगा
लेखक
बड़े भैया मोहन झरिया जी