- सूर्य+राहू
सूर्य ओर राहू दो ऐसे गृह हे जो एक दूसरे से विपरीत होते हुए भी अनेक प्रकार से समान भी हे दोनों गृह बिगरहकारी क्रूर गृह दर्शनिकता ओर राजनीति के कारक भी हे कुंडली मे इन दोनों ग्रहों की युति को सामान्यतः शुभ नहीं कहा जा सकता सूर्य ओर राहू की युति ग्रहण योग का निर्माण करती हे कुंडली के जिस भाव मे यह योग बंता हे उस भाव से संबंधित फलों मे न्यूनतम डेटा हे एस जातक जिसकी कुंडली मे सूर्य राहू की युति हो वह सफल राजनेता भी होता हे मुख्यताय ये योग यदि नवां दसम एवं एकादस भावों मे हो तो राजनीति कारक भी होता हे क्युकी ये दोनों गृह राजनीति प्रभत्व एवं सत्ता के कारक गृह भी हे अतः जब कुंडली मे स्थित इन ग्रहों का संबंध गोचर मे लाभ भाव अर्थत एकादस भाव मे बनेगा तो राज नीति मे सफलता देकर जातक का वर्चस्व स्थापित करेगा
- चंद्र +राहू
दो विपरीत गृह एक दूसरे के शत्रु गृह किन्तु अनेक प्रकार से समान भी हे दोनों धन तथा यात्रा के कारक गृह हे इन दोनों ग्रहों की युति यदि कुंडली के 3.7 भावों मे हो तो ऐसे जातक को अधिका धिक यात्रा करनी पड़ती हे नवां भाव मे यही युति धार्मिक यात्रा का कारण भी बनती हे सप्तम भाव मे व्यापर से संबंधित यात्रा लग्र मे चंद्र राहू ग्रहण योग द्रष्टि निर्माण कर त्वचा रोग तथा मानसिक बेचैनी कारण बंता हे इन पर यदि बुध का दूषित प्रभाव हो तो परिणाम ओर भी खतक होते हे चंद्रमा जल का कारक गृह हे ओर राहू शीशे का प्रतिनिधित्व करता हे परिणामतः उत्तम चंद्रमा वाले जातक का मन सदेव जल के समान निर्मल होता हे जब चंद्र +राहू पर गुरु की शुभ द्रष्टि आ रही हो तो ऐसे जातक का जीवन के प्रति द्रष्टि कोण सदेव शीशे की तरह पारदर्शी एवं निष्पक होता हे एकादस भाव मे यदि योग शुभ प्रभाव लेकर आ जाए तो अचानक धन लाभ भी देता हे यदि चतुर्थ भाव का स्वामी होकर चंद्रमा राहू के साथ द्वादश भाव मे युति बनाए तो यह योग विदेश यात्रा का कारक भी होता हे
- मंगल +राहू

मंगल ओर राहू दोनों एक दूसरे के शत्रु गृह षड़यंत्र झगड़े विवाद शत्रु एवं शहस पराक्रम के भी कारक हे मंगल राहू की युति कुंडली मे अंगकरक योग का निर्माण करती हे इस युति के फलस्वरूप जातक का व्यक्तित्व दुह साहसी अतिक्रोधि कठोर आवेगसिल ओर षड्यन्त्र कारी होता हे लग्र मे यही युति अति क्रोधी तथा अचानक दुर्घटना द्वितीय भाव मे भाइयों से मतभेद त्रातीय मे पराक्रमी चतुर्थ मे माता एवं सुख के लिए अशुभ पंचम मे सफलता मे कमी छिड़ आयु षष्ट मे शल्य चिकित्सा के छेत्र मे सफलता प्रदान करती हे पंचम भाव मे मगल राहू सत्ता पझ से सफलता दिलाते हे सप्तम मे जीवन साथी से मतभेद अष्टम भाव मे जीवनसाथी की आयु मे पर प्रश्न चिन्ह लगती हे नवां दशम एवं एकादश भावों मे यह ग्रहयोग राजनीति मे सफलता मे वर्चस्व एवं प्रभुता संपन बनाता हे द्वादश भाव मे यदि मगल कर्क राशि मे होकर राहू के साथ युति बनए तो ऐसे तो ऐसे जातक का वेवहिक जीवन सुखी नई रहता हे मंगल नीच राशि मे अगर द्वादश भाव मे राहू के साथ होगा तो ऐसा जातक अत्यंत आक्रमण षड्यंत्रकारी एवं हत्या करने की प्रव्रती वाला होगा
- बुध +राहू
बुध +राहू युति जड़त्व योग का निर्माण करती हे बुध गृह को ज्योति शिय द्रष्टि से बुद्धिमत्ता तर्क अभिव्यक्ति भाषा ज्ञान व्यापार इत्यादि का कारक माना जाता हे राहू राजनीति धोखा छल कपट प्रपंच फरेब राजनीति कलंक विदेशी भाषा विदेशी लोग तथा मांशीक रोगों का भी कारक हे लग्र तथा षष्ट भाव मे दोनों की युति त्वचा रोग मिर्गी तथा लाइलाज बीमारी जड़ बुद्धि अस्थिरता [2, 11 मे ] चतुर्थ तथा पंचम सिकछा मे विघ्न तथा धन भाव एवं लाभ भाव मे अनावश्यक खर्च इत्यादि देते हे त्रातीय भाव मे सबंधियों से सप्तम अष्टम भाव मे जीवन साथी से विरोध नवां भाव यही युति नास्तिक बनाती हे दशम भाव मे अपने निर्णयों के द्वारा ही व्यवशय मे हानी तथा द्वादश भाव मे दान यज्ञ पूजा मे अविश्वास तथा शैया सुख मे कमी करती हे जड़त्व योग जातक को चालक धूर्त कपटी एवं धर्म के विरुद्ध आचरण करने वाला बनाता हे यदि इस युति पर गुरु का शुभ प्रभाव हो तो जातक अनेक भाषाओ का ज्ञाता अथवा चालाकी से अपना शिद्द करने वाला होता हे
- गुरु +राहू

गुरु +राहू की युति चांडाल योग का निर्माण करती हे जिस जातक की कुंडली मे दोनों ग्रहों की युति होती हे वह परंपरा विरोधी ओर आध्यात्मिकता मे रुचि ना रखने वाला होता हे एसी स्थिति मे राहू गुरु के सात्विक ओर सुभ गुणों को कम कर देता हे जिस जातक की कुंडली मे लग्र मे गुरु राहू की युति होती हे वह नास्तिक पाखंडी तथा धार्मिकता मे रुचि ना रखने वाले होते हे धन भाव मे यह योग दरिद्रता का सूचक माना जाता हे किन्तु यही युति यदि पंचम नवां अथवा केंद्र भावों मे हो तो ऐसा जातक ज्योतिष शस्त्र का ज्ञातक होता हे त्रातीय सप्तम मे धार्मिक यात्रा तथा दसम एकादश भाव मे राजनीति मे सफलता मिलती हे एसी स्थिति मे यदि राहू गुरु के नकछत्र मे भी हो तो ऐशा जातक सफल राजनेता हो सकता हे एकादश तथा द्वादश भावों मे यदि यह युति हे तो ऐशा जातक तंत्र साधना अथवा तांत्रिक कार्यों के द्वारा धनार्जन करता ह
- शुक्र +राहू
राहू के साथ यदि लग्र मे हे तो क्रोध योग का निर्माण होता हे यह योग जातक को क्रोधी स्वभाव का स्वामी बनाकर आजीवन लड़ाई झगड़े एवम विवाद का कारण बंता हे जिसके फलस्वरूप जातक को अपने कटु स्वभाव के कारण अपने जीवन मे अनेकानेक नुकशान उठाने पड़ते हे शुक्र ओर राहू एक दूसरे के परम मित्र गृह हे शुक्र प्रेम विवाह शॉनदर्य घूघराले बाल एवं श्याम वर्ण इत्यादि का कारक गृह हे राहू भी गुप्त सबंधों एवं प्रेम संबंधों का कारक हे व्यक्ति को श्याम वर्ण ही देता हे कुंडली मे दोनों ग्रहों की युति जातक को विपरीत लिंग के प्रति स्वाभाविक आकर्षण प्रदान करती हे यदि शुक्र राहू की युति पति पत्नी दोनों की कुंडली मे सप्तम भाव मे हे तो वेवहिक जीवन मे कष्ट एवं सबंध विच्छेद का कारण भी बनती हे ऐसे जातक के अन्यत्र सबंध अवश्य ही बनते हे
- शनि +राहू
शनि के साथ राहू की युति ज्योतिष मे नंदी योग के नाम से जाना जाता हे यह युति जिश भाव मे बनती हे उस भाव से सबंधित कष्ट एवं जिस भाव पर द्रष्टि डालती हे उससे सबंधित शुभ फल प्रदान करती हे इस योग के फलस्वरूप जातक को सुख वैभव एवं समरद्धी भी प्राप्त होती हे शनि राहू की युति पर यदि मगल का प्रभाव भी आ जाए तो ऐसा जातक साधारण तय क्रूर एवं आतंकवादी प्रवत्ति का होता हे यह युति यदि लग्र मे या जाए तो ऐसा जातक हत्या या आत्महत्या का प्रयास भी कर सकता हे लग्र मे शनि राहू के फलस्वरूप छिड़ स्वस्थ द्वितीय भाव मे धन भाव त्रातीय भाव मे संबंधी से विरोध चतुर्थ मे माता के लिए अशुभ पंचम मे सफलता मे कमी षष्ठ भाव मे रोग सप्तम मे जीवन साथी से वेमनस्य अष्टम मे पेत रक संपाती प्राप्त करने मे अड़चन नवां मे निर्बल भाग्य दशम मे व्यवशय मे परेशानी एकादश मे लाभ कम तथा द्वादश भाव मे भी वेवहिक शुख मे कमी होती हे