आइये सुनते मोहित झारिया जी के अल्फास कलुआ

कलुआ

  • घर से निकला दबकर छिपकर ,कलुआ महुआ पीने को
  • चाल मे तेजी ,खत्म हुई तो कहा मिलेगा जीने को

  • नजरों से पढ़कर साकी ने , भरकर प्याला दे डाला
  • नाक शिकोड़े किया गला तर ,प्रेम कहा रुकने वाला

  • मएखाने मे यार भी बेटे ,हमप्याला बन जाते हे
  • झुटा प्याला ,बासा पानी ,अम्रात शुख दे जाते हे

  • बस महुए ने असर दिखाया ,कलुआ कलुआ ना रह पाया
  • इस पल रंक तो उस पल राजा ,देर रात तक अभिनय छाया

  • बहुत बार कोसिस किया उटने की , पर उटा कहा जाता हे
  • बस चार कदम चला ही था ओर धूल चाट ही जाता हे

  • घर का रास्ता अब ना सस्ता ,नालों का सुख पाता हे

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *