- मुर्दे ही नहीं जिंदा ,इस शहर मे जलते हे
- किरदार साप से अब ,आस्तीन मे बदलते हे

धूल जाएंगे मुखोंटे ,हो एक तेज बारिश
हे साथ का दिखावा ,पर साथ ना चलते हो
- इस रात की सुबहा भी कुछ जल्द हो सुंकु हो
- बस कुछ दिखा था सूरज दिन सर्द मे ढलते हे
हर हवा की सिहरन हँसती हे मुझसे कहकर
पतझड़ मे कभी पत्ते क्या शाख पे खिलते हे
- कुछ दर्द अभी तक हे भुला नहीं पुराना
- हंस नय से मुखोंटे फिर मोड पे मिलते हे
जो लुट चुके हो मोहन शिकवा भी हो तो केसा
मासूम रख के फितरत बाजार निकलते हे