आइये सुनते मोहन झारिया जी के अल्फाज किरदार

  • मुर्दे ही नहीं जिंदा ,इस शहर मे जलते हे
  • किरदार साप से अब ,आस्तीन मे बदलते हे

धूल जाएंगे मुखोंटे ,हो एक तेज बारिश

हे साथ का दिखावा ,पर साथ ना चलते हो

  • इस रात की सुबहा भी कुछ जल्द हो सुंकु हो
  • बस कुछ दिखा था सूरज दिन सर्द मे ढलते हे

हर हवा की सिहरन हँसती हे मुझसे कहकर

पतझड़ मे कभी पत्ते क्या शाख पे खिलते हे

  • कुछ दर्द अभी तक हे भुला नहीं पुराना
  • हंस नय से मुखोंटे फिर मोड पे मिलते हे

जो लुट चुके हो मोहन शिकवा भी हो तो केसा

मासूम रख के फितरत बाजार निकलते हे

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